क्या आपने सुंदरबन का नाम सुना है? बंगाल की खाड़ी से सटा यह विशाल मैंग्रोव वन अपनी जैव विविधता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां दुर्लभ बंगाल टाइगर से लेकर नदी की डॉल्फ़िन तक, अनगिनत जीव अपना घर बनाते हैं। यह दलदल न सिर्फ इनके लिए वासस्थान है, बल्कि तटीय समुदायों के लिए भी आजीविका का साधन है। कल्पना कीजिए, क्या होगा अगर धीरे-धीरे हमारा सुंदरबन, या आपके क्षेत्र का कोई प्रिय दलदल, हमारी आंखों के सामने गायब होने लगे?
अमेरिका के लुइसियाना में हाल ही में एक अध्ययन के चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं। वैज्ञानिकों ने ये भयावह भविष्यवाणी की है कि अगर हमने अभी जलवायु परिवर्तन पर रोक नहीं लगाई, तो आने वाली शताब्दी में दुनिया भर के बहुमूल्य दलदलों में से एक बड़ा हिस्सा हमेशा के लिए नष्ट हो सकता है।
समंदर निगल सकता है लुइसियाना के दलदल
वैज्ञानिकों ने यह जांचने के लिए कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग किया कि समुद्र के बढ़ते स्तर और जलवायु परिवर्तन के अन्य प्रभाव लुइसियाना के तटीय दलदलों पर कैसे पड़ सकते हैं। एक कपड़े के सिकुड़ते कंबल की तरह, उन्होंने पाया कि जलवायु परिवर्तन इस अनूठे पर्यावरण को निगल लेगा। अगर कार्बन उत्सर्जन ऐसे ही बढ़ता रहा, तो इस सदी के अंत तक यह अमरीकी राज्य अपने 67% दलदलों को खो सकता है।
भारत भी खतरे से बाहर नहीं
यह सिर्फ लुइसियाना की कहानी नहीं है। सुंदरबन, वैसे ही जैसे कई भारतीय दलदल भी खतरे में हैं। समुद्र का बढ़ता स्तर, चक्रवातों की शक्ति में बढ़ोतरी – जलवायु परिवर्तन एक घातक दुश्मन के रूप में हमला कर रहा है। एक भारतीय दलदल के सिकुड़ने से सिर्फ पक्षी या बाघ प्रभावित नहीं होंगे; मछुआरों की रोजी-रोटी, तटीय इलाकों की सुरक्षा, सब पर बुरा असर पड़ेगा। वैश्विक आपदा हम सभी के दरवाज़े पर दस्तक दे रही है।
उम्मीद की एक किरण
यह सच है कि ये अध्ययन डरावना है, लेकिन निराश होने की जरूरत नहीं है। लुइसियाना के शोध में एक सकारात्मक बात यह भी सामने आई कि अगर हम तुरंत कार्बन उत्सर्जन में कटौती करें, तो हम इन दलदलों के एक बड़े हिस्से को बचा सकते हैं।
हम कुछ कर सकते हैं
यह लड़ाई आसान नहीं, लेकिन जीती जा सकती है। कुछ छोटे बदलावों से भी हम फर्क ला सकते हैं। बिजली की बचत करना, जहां मुमकिन हो साइकिल या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, प्लास्टिक कम करना – ये सभी कदम जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद करते हैं।
याद रखें, दांव पर ना सिर्फ भारत की, बल्कि पूरी दुनिया की प्राकृतिक विरासत है। अगर आज हम नहीं रुके, तो आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नहीं करेंगी।
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